1999 के बाद अब 2025 में देश की राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा की सरकार बनी हैं। 

यह सफलता बहुत लम्बे समय तीन दशक के बाद मिली हैं। 

पिछले 33 वर्षों के बाद दिल्ली में भाजपा ने बड़ी जीत हांसिल की। पार्टी का परचम लहराया हैं। 

इस जीत का व्यापक निष्कर्ष एक मात्र यह हैं की यह पार्टी के देवतुल्य कार्यकर्त्ताओं की जी तोड़ मेहनत और संगठन की मजबूती का नतीजा हैं।

 

दिल्ली के संपन्न विधानसभा निर्वाचन में भाजपा को 48 सीट पर विजय मिलने को अपार सफलता माना जा रहा हैं। लेकिन समाचार माध्यमों की और से इसका धरातल पर विश्लेषण नहीं हो रहा हैं। 

समाचार माध्यम अभी भी घिसे - पिटे

अंदाज़ में व्यक्ति केंद्रित विश्लेषण कर रहे हैं। 

अधिकतर समाचार माध्यम इसे केजरीवाल सरकार के दम्भ की पराजय बता रहे हैं।

कोई भी माध्यम यह नहीं बता रहा हैं की भाजपा ने किस तरह अपने संगठन का बूथवार विस्तार किया। 

संगठन के दम पर किस तरह लोगो तक अपनी बात पहुंचाई। 

दिल्ली चुनाव में भ्रष्टाचार निश्चित ही एक मुद्धा था। 

लेकिन यही मुद्धा पश्चिम बंगाल में भी तो था। 

फिर भाजपा को वहां सफलता क्यों नहीं मिल रही हैं?

 

इसका कारण स्पष्ट हैं की भाजपा वहां संगठन स्तर पर मजबूत नहीं हैं। इसलिए सही विश्लेषण किया जाए तो यह सत्य स्थापित निकलेगा की कार्यकर्ताओं और संगठन के दम पर भाजपा को दिल्ली की जीत मिली हैं। इसलिए इस जीत का असली हक़दार पार्टी का कार्यकर्ता माना जाना चाहिए।

 

इस जीत से यह स्पष्ट होता हैं की देश के तमाम राजनितिक दलों से भाजपा क्यों अलग हैं। 

क्योंकि यह एकमात्र पार्टी हैं जो कार्यकर्ता आधारित कहलाती हैं। 

पार्टी का संगठन भी थोपकर नहीं बल्कि लोकतान्त्रिक पद्धति से आंतरिक चुनावों से गढ़ा जाता हैं।

 

33 वर्ष पहले दिल्ली में भाजपा का जो युवा कार्यकर्ता 19 वर्ष आयु का था, वह अब 50 वर्ष का हो गया हैं। 

तीन दशक से मिल रही लगातार पराजय के बावजूद वह संघर्ष कर रहा था। 

जनता से नाता जोड़ कर रख रहा था।

विधानसभा चुनावों में हार मिलने से दुखी था, लेकिन निराश नहीं था।

यह कार्यकर्ता अपने संघर्ष से विगत तीन चुनावों से पार्टी को लोकसभा की सातो सीट भी जीता रहा था। 

यह स्पष्ट हैं की लगातार पराजय का सबसे ज्यादा असर जमीनी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ता हैं। कार्यकर्ता जनता के बीच रहता हैं। उसे लोगो को जवाब देना पड़ता हैं। 

लोगो की नाराजी झेलनी पड़ती हैं। 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी से लगातार हारने वाली भाजपा अकेली पार्टी नहीं थी। 

कांग्रेस सहित अन्य पार्टियां भी हार रही थी। 

लेकिन हार के परिणाम से कांग्रेस आज दिल्ली सहित देश भर में कार्यकर्ता विहीन हो गई हैं । मुकाबला करने के लिए उसके पास न तो जमीन पर कार्यकर्ता हैं और नहीं संगठन बचा हैं। 

 

दिल्ली की जीत का संदेश स्पष्ट हैं। यह किसी लहर की जीत नहीं बल्कि जमीनी कार्यकर्ताओं की मेहनत तथा पार्टी संगठन की की जीत हैं। 

भाजपा का कार्यकर्ता देवतुल्य इसलिए कहलाता हैं की 

वह जय-पराजय से विचलित हुए बगैर पार्टी के लिए सतत सक्रिय रहता हैं।

भाजपा को नेतृत्व, संगठन और कार्यकर्ता का समावेशी रूप कहा जा सकता हैं।

इसलिए व्यक्ति परक पार्टियों से भाजपा अलग हैं। 

समाचार माध्यम भले ही चटकारे लेकर जय पराजय का विश्लेषण करें। लेकिन दिल्ली में भाजपा की जीत का असल शिल्पकार पार्टी का निष्ठावान देवतुल्य कार्यकर्ता और पार्टी का संगठन हैं।

न्यूज़ सोर्स : Delhi election editorial by Rajesh Moonat